सिंह अकेला बन रमे, पलक पलक करे ठौर।
जैसे बन है आपना, तैसा बन है और।।१७०१।।
अर्थ: सिंह अकेला बन में आनंदित होता है, हर कदम पर एक स्थान पाता है। जैसे जंगल आपका है, वैसे ही दूसरों का भी जंगल है।
Meaning: The lion enjoys solitude, finding a place at every step. Just as the forest is yours, so is the forest of others.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में एकांत और समानता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि अकेलापन भी सुखद हो सकता है और हर किसी की स्थिति समान हो सकती है।
सुकृत वचन माने नहीं, आपु न करे विचार।
कहहिं कबीर पुकारि क, स्वप्न हु भया संसार।।१७०२।।
अर्थ: सद्गुण की बातें स्वीकार नहीं की जातीं, और कोई विचार नहीं करता। कबीर पुकारते हैं, यह संसार एक सपना बन गया है।
Meaning: The words of virtue are not accepted, and no one contemplates. Kabir calls out, this world has become a dream.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सद्गुण और वास्तविकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सद्गुण की बातें अक्सर अनदेखी की जाती हैं और यह दुनिया एक सपना जैसी हो गई है।
सुगना सेमर बेगि तजि, तेरी घने बिगूची पांख।
ऐसा सेमर सेइया, जाके हृदय न आंख।।१७०३।।
अर्थ: सुंदर मोर जल्दी से सेमर पेड़ को छोड़ता है; उसकी घनी पंख आपकी सजावट करती है। ऐसा मोर दुर्लभ है, जिसका दिल है लेकिन आंखें नहीं।
Meaning: The beautiful peacock forsakes the Seemar tree quickly; its dense feathers adorn you. Such a peacock is rare, who has the heart but not the eyes.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में ज्ञान और दृष्टिकोण की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग बहुत सुंदर और प्रभावशाली होते हैं, लेकिन उनके पास सही दृष्टिकोण नहीं होता।
सेमर का सुगना, छिहुले बैठा जाय।
चोंच संवारे सिर धुन, ई उसी ही को भाय।।१७०४।।
अर्थ: सेमर के पेड़ का मोर शाखा पर बैठता है। वह अपनी चोंच और सिर को सजाता है, अपनी सुंदरता में खुश रहता है।
Meaning: The peacock of the Seemar tree sits on the branch. It decorates its beak and head, delighting in its own beauty.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सुंदरता और समझ की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग अपनी सुंदरता में बहुत मगन रहते हैं और खुद को ही पसंद करते हैं।
सोना सज्जन साधुजन, टूटि जुरहिं शत् बार।
दुर्जन कुंभ कुम्हार का, एकहि धरे दरार।।१७०५।।
अर्थ: एक अच्छा, धर्मी व्यक्ति सौ बार टूटकर जुड़ता है। एक बुरा व्यक्ति, जैसे कि एक कुम्हार का बर्तन, एक ही दरार से टूट जाता है।
Meaning: A good, virtuous person is broken and mended a hundred times. A wicked person, like a potter's vessel, breaks with just one crack.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सद्गुण और दुष्टता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि अच्छे लोग बार-बार टूटकर भी ठीक हो जाते हैं, जबकि बुरे लोग एक छोटी सी दरार से ही टूट जाते हैं।
हंस बकु देख एक, रंग चरे हरियरे ताल।
हंस क्षीर जानिये, बकु धरेंगे काल।।१७०६।।
अर्थ: हंस बकरे को देखता है, हरे रंग की तालाब की ओर। हंस को शुद्ध जानो, जबकि बकरे का अंत समय आने पर होगा।
Meaning: The swan looks at the crane, the color of the green lake. Know the swan to be pure, while the crane will eventually meet its end.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बुद्धिमत्ता और दृष्टिकोण की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्ची समझ और शुद्धता हमेशा महत्वपूर्ण होती है, जबकि अन्य चीजें अंततः समाप्त हो जाती हैं।
हंसा तूं तो सबल था, हलकी तेरी चाल।
रंग कुरंगे रंगिया, त किया और लगवार।।१७०७।।
अर्थ: ओ हंस, तुम मजबूत थे, तुम्हारी चाल हल्की थी। फिर भी रंगों और रंगीनियों में भिन्नता क्यों है?
Meaning: O swan, you were strong, with your light gait. Why, then, is there a disparity in colors and hues?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में शक्ति और बाहरी रूप की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि वास्तविक शक्ति और विशेषता बाहरी दिखावे से अधिक महत्वपूर्ण होती है।
हंसा के घट भीतरे, बसे सरोवर खोट।
एकौ जीव ठौर नहिं लागा, रहा सो ओटहि ओट।।१७०८।।
अर्थ: हंस के घट के भीतर एक खराब सरोवर स्थित है। कोई भी जीव ठौर नहीं पाता; सभी छिपे रहते हैं।
Meaning: Within the vessel of the swan resides the tainted lake. No living being finds a place; all remain hidden behind covers.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में आंतरिक सत्य और दृष्टिकोण की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बाहरी रूप के बावजूद, असली स्थिति हमेशा छिपी रहती है।
हंसा तु सुवरण वरण, कहां वरणों मैं तोहिं।
तरुवर पाय पहेलहु, तबहि सराहौ तोहिं।।१७०९।।
अर्थ: ओ हंस, तुम सोने के रंग के हो, तुम्हारी पहचान कहाँ है? केवल पेड़ पर चढ़ने के बाद ही तुम्हारी सराहना होगी।
Meaning: O swan, you are of golden hue, where is the recognition for you? Only after climbing the tree will you be praised.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में गुण और मान्यता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि कई बार असली पहचान और प्रशंसा तब ही मिलती है जब आप प्रयास करते हैं।
हंसा मोति बिकनिया, कंचन थार भराय।
जो जाको मम न जाने, सो ताको काह कराय।।१७१०।।
अर्थ: हंस मोतियों को बेचता है और अपने सोने के बर्तन को भरता है। जिसे इसके मूल्य की पहचान नहीं है, उसके लिए क्या किया जा सकता है?
Meaning: The swan sells pearls and fills its golden dish. What can be done for someone who does not recognize its value?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूल्य और पहचान की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि असली मूल्य और मूल्यांकन की पहचान नहीं करने वाले को कुछ नहीं किया जा सकता।
हंसा सरवरि तजि चले, देही पारिगौ सून।
कहहिं कबीर सुनहु हौ सन्तो, ते दर तेई थून।।१७११।।
अर्थ: हंस सरोवर को छोड़कर सूनी किनारे पर चला जाता है। कबीर कहते हैं, सुनो, हे संतों, उस दहलीज पर तैंतीस दरवाजे हैं।
Meaning: The swan leaves the lake and goes to the empty shore. Kabir says, listen, O saints, there are thirty-three doors at that threshold.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में यात्रा और सत्य की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्ची यात्रा और खोज में बहुत सारे द्वार होते हैं जो हमें खुले नजर आते हैं।
हद चले ते मानवा, बेहद चले सो साधु।
हद बेहद दोनों तजे, ताकी मती अगाधु।।१७१२।।
अर्थ: सीमित आदमी सीमा तक यात्रा करता है, असीमित उससे परे जाता है। गहरी समझ वाला व्यक्ति दोनों सीमाओं और असीमितता को छोड़ देता है।
Meaning: The limited man travels to the extent, the limitless goes beyond. Both limit and beyond are abandoned by the one with deep understanding.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सीमाओं और असीमितता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्ची समझ उन सीमाओं को पार कर जाती है जो हमें पहले दिखती थीं।
हरि हीरा जन जौहरी, सबनि पसारी हाट।
जब आए जन जौहरी, तब हीरा की साट।।१७१३।।
अर्थ: हरी हीरा का जौहरी है, जो बाजार में दुकान लगाता है। जब सच्चा जौहरी आता है, तब हीरा की कीमत समझी जाती है।
Meaning: Hari is the jeweler of the precious gem, setting up shop in the market. When the true jeweler arrives, the gem is valued.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूल्य और पहचान की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चे मूल्य का आकलन तब होता है जब सही व्यक्ति आता है और मूल्य की पहचान करता है।
हाड़ जरत जैसे लाकरी, केस जरे जैसे घास।
कबीरा जरे रामरस, कोठी जरे कपास।।१७१४।।
अर्थ: जैसे लकड़ी जलती है और बाल घास की तरह जलते हैं, कबीर कहते हैं, राम का रस जलता है और महल कपास की तरह जलता है।
Meaning: Just as wood burns and hair burns like grass, Kabir says, the essence of Ram burns, and the mansion burns like cotton.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में भौतिक और आध्यात्मिक बुनियादी असत्यता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक सत्य और भौतिक वस्त्र दोनों ही अंततः जलते हैं।
हाथ कटोरा खोवा भरा, मग जोवत दिन जाय।
कबिरा उता चित्त सों, छांछ दियो नहिं जाय।।१७१५।।
अर्थ: हाथ में कटोरा और भरा हुआ बर्तन लेकर, दिन गुजर जाता है। कबीर कहते हैं, पूर्ण चित्त के बावजूद, छाछ नहीं आती।
Meaning: With a bowl and a pot full of offerings, the day passes by. Kabir says, even with a full mind, buttermilk does not come.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में भौतिक आवश्यकताओं और आंतरिक संतोष की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बाहरी भरे हुए बर्तन और आंतरिक संतोष की स्थिति अलग होती है।
हिलगी भाल शरीर महं, तीर रहा है टूट।
चुम्बक बिनु निकसै नहीं, कोटि पाहन गौ छूट।।१७१६।।
अर्थ: शरीर हिलता हो, और बाण टूट रहा हो। चुम्बक के बिना पत्थर नहीं निकलते, एक करोड़ पत्थर भी बंधे रहते हैं।
Meaning: The body may be trembling, and the arrow may be breaking. Without the magnet, stones cannot be released, even a crore stones are bound.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में आंतरिक वास्तविकता और बाधाओं की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बिना सही तत्व के, बड़ी मात्रा में भी बंधनों को तोड़ा नहीं जा सकता।
हीरा तहां न खोलिए, जहं कुंजरो की हाट।
सहजे गांठो बांधिये, लगिए अपनी बाट।।१७१७।।
अर्थ: हीरा उस जगह न दिखाओ जहां हाथियों का व्यापार होता है। इसे सुरक्षित रूप से बांधो और अपनी राह पर चलो।
Meaning: Do not reveal the diamond where elephants are traded. Securely bind it and follow your own path.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूल्य और विवेक की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण चीज़ों को उचित स्थान पर ही रखें और अपनी राह पर चलें।
हीरा सोई सराहिये, सहे जो धन का चोट।
कपट कुरंगी मानवा, परखत निकला खोट।।१७१८।।
अर्थ: हीरा को धन के आघात को सहन करने के लिए सराहा जाता है। कपटी मनुष्य, जब परखा जाता है, तो दोष प्रकट होते हैं।
Meaning: The diamond is praised for enduring the blow of wealth. The deceitful human, when examined, reveals flaws.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सच्चे मूल्य और धोखाधड़ी की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि असली मूल्य केवल तब ही दिखता है जब वास्तविक परीक्षण होता है।
हृदय भीतर आरसी, मुख देखा नहिं जाय।
मुख तो तब ही देखिए, जब दिल की दुविधा जाय।।१७१९।।
अर्थ: दिल के भीतर ही आरसी है, चेहरा नहीं देखा जा सकता। चेहरा तभी देखा जाता है जब दिल की दुविधा हल होती है।
Meaning: The mirror is within the heart, the face cannot be seen. The face is seen only when the heart's dilemma is resolved.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में हृदय और दृष्टिकोण की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्ची समझ और स्पष्टता तभी मिलती है जब दिल की उलझनें समाप्त होती हैं।
हरिया जांणे रूंषड़ा, उस पांणी के नेह।
सूका काठ न जाणई, कबहू बूठा मेह।।१७२०।।
अर्थ: हरी वस्तु पानी की सच्चाई जानती है। सूखा लकड़ी नहीं समझता, केवल झूठे बारिश को जानता है।
Meaning: The green one knows the essence of water. The dry wood does not understand, it only knows the false rain.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में परिप्रेक्ष्य और सत्य की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जो वास्तविकता को समझता है, वह झूठी चीज़ों से अज्ञात रहता है।
झिरमिरि झिरमिरि बरषिया, पांहण ऊपरि मेह।
माटी गलि सैजल भई, पांहण वाही तेह।।१७२१।।
अर्थ: बरसात पत्थर पर धीरे-धीरे गिरती है। मिट्टी तरल में बदल जाती है, पत्थर वैसा का वैसा रहता है।
Meaning: The rain falls softly on the stone. The soil melts into moisture, the stone remains the same.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में प्रकृति और परिवर्तन की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ तत्व परिवर्तन को स्वीकार करते हैं, जबकि कुछ अडिग रहते हैं।
पार ब्रह्म बूठा मोतियां, बांधी सिषरांह।
सगुरां सगुरा चुणि लिया, चूक पड़ी निगुरांह।।१७२२।।
अर्थ: परम ब्रह्म मोतियों को एक धागे में बांधता है। सच्चा गुरु सच्चे मोतियों को चुनता है, झूठे मोती छोड देता है।
Meaning: The supreme Brahman ties the pearls in a string. The true Guru selects the genuine pearls, the false ones are left out.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिव्य सत्य और मार्गदर्शन की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चे गुरु केवल सच्चे तत्वों को स्वीकार करते हैं और झूठे तत्वों को छोड़ देते हैं।
कबीर हरि रस बरषिया, गिर डूंगर सिषरांह।
नीर मिबाणां ठाहरै, नाऊं छापरड़ाह।।१७२३।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, हरि का रस पहाड़ियों पर बरसता है। पानी भरपूर होता है, और नाव बह जाती है।
Meaning: Kabir says, the essence of Hari rains on the hills. The waters are abundant, and the boat drifts away.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिव्य तत्व और दृष्टिकोण की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि दिव्य सत्य हर जगह प्रकट होता है, लेकिन हमारी वस्तुओं की दिशा बदल सकती है।
कबीर मूंडठ करमियां, नष सिष पाषर ज्यांह।
बांहणहारा क्या करै, बांण न लागै त्यांह।।१७२४।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, दुष्ट के कर्म पत्थर की सच्चाई को नष्ट कर देते हैं। धनुर्धारी क्या कर सकता है जब बाण लक्ष्य पर न लगे?
Meaning: Kabir says, the actions of the wicked destroy the essence of the stone. What can the archer do when the arrow does not hit the mark?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में कर्म और परिणाम की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बुरे कर्म असली सच्चाई को नष्ट कर सकते हैं और लक्ष्य की प्राप्ति कठिन हो सकती है।
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझया मन।
कहि कबीर चेत्या नहीं, अजहूं सु पहला दिन।।१७२५।।
अर्थ: कहते-सुनते दिन बीत जाते हैं, लेकिन मन उलझा रहता है। कबीर कहते हैं, यदि आप जागरूक नहीं हैं, तो आज भी पहला दिन है।
Meaning: Days pass in hearing and speaking, yet the mind remains confused. Kabir says, if you are not aware, it is still the first day.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में समझ और जागरूकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि भले ही समय बीत जाए, यदि आप सच्चे रूप से जागरूक नहीं हैं, तो कुछ भी नया नहीं है।
कहै कबीर कठोर कै, सबद न लागै सार।
सुधबुध कै हिरदै भिदै, उपजि विवेक विचार।।१७२६।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, कठोर शब्दों में सार नहीं होता। जो हृदय ज्ञान से भरा होता है, वह विवेक और चिंतन उत्पन्न करता है।
Meaning: Kabir says, the harsh words do not contain essence. The heart pierced by wisdom produces discernment and contemplation.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सत्य और समझ की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि कठोर शब्दों में सच्चा अर्थ नहीं होता, और सच्चा ज्ञान ही विवेक उत्पन्न करता है।
सीतलता के कारणै, नाग बिलंबे आइ।
रोम रोम विष भरि रह्मा, अमृत कहा समाइ।।१७२७।।
अर्थ: ठंडक के कारण नाग विलंब से आता है। शरीर विष से भरा है, अमृत कहां समाता है?
Meaning: Due to coolness, the snake delays coming. The body is filled with poison, where is the nectar?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में ठंडक और विष की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि शरीर विष से भरा होता है और ठंडक केवल एक अस्थायी स्थिति है।
सरपहि दूध पिलाइये, दूधै विष ह्व जाइ।
ऐसा कोई ना मिले, स्यूं सरपै विष खाइ।।१७२८।।
अर्थ: नाग को दूध दो, वह विष बन जाता है। नाग की प्रकृति ऐसी ही है, वह विष ही खाता है।
Meaning: Give milk to the snake, it turns into poison. Such is the nature of the snake, it consumes poison.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में प्रकृति और धोखाधड़ी की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जो प्रकृति में बुरा है, वह किसी भी अच्छे प्रयास को स्वीकार नहीं करता।
जालौं इहै बड़पणां, सरलै पेड़ि खजूरि।
पंखी छांह न बीसवै, फल लागे ते दूरि।।१७२९।।
अर्थ: यह खजूर के पेड़ की अहंकार है। पंछी उसकी छांव में नहीं बैठते, फल दूर रहता है।
Meaning: This is the arrogance of the date palm tree. The bird does not sit in its shade, the fruit is far away.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में अहंकार और सरलता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि अहंकारी वस्तुएं या लोग वास्तव में उपयोगी नहीं होते, और फल को दूर रखते हैं।
ऊंचा कुल के कारणै, बंस बध्या अधिकार।
चंदन बास भेदै नहीं, जाल्या सब परिवार।।१७३०।।
अर्थ: ऊंची जाति के कारण परिवार को अधिकार मिलते हैं। चंदन की सुगंध नहीं मिटती, भले ही पूरा परिवार जल जाए।
Meaning: Due to high lineage, the family holds power. The sandalwood's fragrance does not fade, even if the whole family is burnt.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सामाजिक स्थिति और वास्तविक मूल्य की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चा मूल्य और गुण समाज के किसी भी सम्मान से प्रभावित नहीं होते।
कबीर चंदन कै निड़ै, नींव भि चंदन होइ।
बूड़ा बंस बड़ाइतां, यौं जिनि बूडे कोइ।।१७३१।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, चंदन की प्रकृति ऐसी है कि उसकी नींव भी चंदन की होती है। पुरानी जाति ऊंची होती है, लेकिन कौन पुरानी जाति को पहचानता है?
Meaning: Kabir says, sandalwood's nature is such that even its foundation is sandalwood. The old lineage is elevated, but who recognizes the old?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में मूल्य और जाति की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि असली मूल्य सच्चे गुणों में होता है, न कि केवल जाति या स्थिति में।
कबीर बहुत जतन करि कीजिये, सब फल जाय नसाय।
कबीर संचै सूम धन, अन्त चोर लै जाय।।१७३२।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, बहुत प्रयास करने के बावजूद सारे फल खो सकते हैं। कबीर सलाह देते हैं कि सच्चे धन को संचित करो, क्योंकि अंत में चोर सब ले जाएगा।
Meaning: Kabir says, despite much effort, all the fruits may be lost. Kabir advises to accumulate true wealth, for in the end, the thief takes it all.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में प्रयास और परिणाम की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि भले ही कितनी मेहनत की जाए, अंत में केवल सच्चा और वास्तविक धन ही मूल्यवान होता है।
कबीर औंधी खोपड़ी, कबहूं धापै नांहि।
तीन लोक की सम्पदा, कब आवै घर मांहि।।१७३३।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, उलटी खोपड़ी कभी ढकी नहीं जाती। तीनों लोकों की संपत्ति, कब घर आएगी?
Meaning: Kabir says, the upside-down skull never gets covered. The wealth of the three worlds, when will it come to one's home?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में ज्ञान और भौतिक धन की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि भौतिक संपत्ति के चक्कर में मनुष्य वास्तविक ज्ञान को समझ नहीं पाता।
कबीर सूम थैली अरु श्वान भग, दोनों एक समान।
घालत में सुख ऊपजै, काढ़त निकसै प्रान।।१७३४।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, धन की थैली और भागते हुए कुत्ते में कोई अंतर नहीं है। संभालने में खुशी मिलती है, लेकिन हटाने में जीवन चला जाता है।
Meaning: Kabir says, the pot of wealth and the running dog are the same. In handling, joy arises, but in removing, life is lost.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में भौतिकवाद और संतोष की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि धन और दौड़ना दोनों ही एक जैसे हैं, जो खुशी देने के बजाय जीवन को छीन सकते हैं।
जोगी जंगम सेवड़ा, ज्ञानी गुनी अपार।
षट दर्शन से क्या बने, एक लोभ की लार।।१७३५।।
अर्थ: योगी, जंगम साधु, और अपार गुण वाले ज्ञानी सभी खोजी हैं। छह दर्शन का क्या लाभ होता है जब लोभ से प्रेरित हों?
Meaning: The yogi, the wandering monk, and the wise with boundless virtues all are seekers. What does six philosophies achieve when driven by greed?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में आध्यात्मिक अभ्यास और इच्छाओं की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि विभिन्न धार्मिक या दार्शनिक विचार भी तब तक कोई मूल्य नहीं रखते जब तक उनमें लोभ और स्वार्थ न हो।
रात्यूं रूंनी बिरहनीं, ज्यूं बंची कूं कुंज।
कबीर अंतर प्रजल्या, प्रगट्या बिरहा पुंज।।१७३६।।
अर्थ: रात का समय बिछड़न में बिताया जाता है, जैसे एक हिरण झाड़ी में छिपा रहता है। कबीर कहते हैं, आत्मा के भीतर एक जलती हुई आग है, और बिछड़न एक दर्द का गुच्छा बन जाता है।
Meaning: The night is spent in separation, like a deer in a thicket. Kabir says, within the soul is a burning flame, and separation manifests as a bundle of pain.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बिछड़न और longing की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि बिछड़न के समय आत्मा में एक आग जलती है, जो पीड़ा और दर्द का रूप ले लेती है।
अंबर कुंजा करलियां, गरजि भर सब ताल।
जिनि थैं गोबिंद बीछुटे, तिनके कौण हवाल।।१७३७।।
अर्थ: आसमान में गरजते बादल हैं, जो सब घाटियों को भर देते हैं। जो गोविंद से बिछड़े हैं, उनके लिए कौन राहत दे सकता है?
Meaning: The sky roars with thunder, filling all the valleys. For those separated from Govind, who can offer solace?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिव्य से बिछड़ने के दर्द को व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि बिछड़े लोगों के लिए कोई भी राहत नहीं दे सकता।
चकवी बिछुटी रैणि की, आइ मिली परभाति।
जे जन बिछुटे राम सूं, नां सुख धूप न छांह।।१७३८।।
अर्थ: कोयल, जो अपने साथी से बिछड़ी है, सुबह को पाती है। जो लोग राम से बिछड़े हैं, उन्हें न तो धूप में सुख मिलता है और न ही छांव में।
Meaning: The nightingale, separated from its mate, finds the morning. Those who are separated from Ram, neither find happiness in sunlight nor shade.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिव्य से बिछड़ने की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। उन्होंने कहा कि जो राम से बिछड़े हैं, उन्हें किसी भी स्थिति में सुख नहीं मिलता।
बासुरि सुख नां रैणि सुख, ना सुख सुपिनै मांहि।
कबीर बिछुट्या राम सूं , नां सुख धूप न छांह।।१७३९।।
अर्थ: बांसुरी सुख नहीं देती, न रात सुख देती है। नींद भी खुशी नहीं देती। कबीर कहते हैं, जो राम से बिछड़े हैं, उन्हें न तो धूप में और न ही छांव में सुख मिलता है।
Meaning: The flute does not bring happiness, nor does the night. Neither does sleep provide joy. Kabir says, those separated from Ram, neither find pleasure in sunlight nor shade.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बिछड़ने के दर्द को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि जो राम से बिछड़े हैं, उन्हें किसी भी सुखद स्थिति में खुशी नहीं मिलती।
बिरहनि ऊभी पंथ सिरि, पंथी बूझे धाइ।
एक सबद कहि पीव का, कब रे मिलैंगे आइ।।१७४०।।
अर्थ: विछड़न से पीड़ा होती है, यात्री रास्ते पर समझकर दौड़ते हैं। प्रिय को एक शब्द बोलते हुए, कब हम फिर मिलेंगे?
Meaning: The separation causes pain, the traveler understands and runs on the path. Speaking one word to the beloved, when will we meet again?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में बिछड़ने और मिलन की खोज की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि separation का दर्द और मिलन की खोज यात्री की तरह होती है।
बहुत दिनन की जोवती, बाट तुम्हारी राम।
जिव तरसै तुझ मिलन कूं, मनि नाहीं विश्राम।।१७४१।।
अर्थ: बहुत दिनों से यात्रा लंबी है, मार्ग तुम्हारा है, राम। आत्मा तुम्हारे मिलने की इच्छाशक्ति रखती है, दिल को विश्राम नहीं मिलता।
Meaning: For many days the journey is long, the path is yours, Ram. The soul yearns to meet you, the heart finds no rest.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में भक्ति और लंबी यात्रा की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा की भक्ति और मिलन की इच्छा से दिल को शांति नहीं मिलती।
बिरहिन ऊठै भी पड़े, दरसन कारनि राम।
मूवां पीछें देहुगे, सो दरसन किहिं काम।।१७४२।।
अर्थ: विछड़न से पीड़ा होती है, प्रिय की आकांक्षा से गिर जाता है। अगर पीछे से देखें, क्या दर्शन का कोई काम होता है?
Meaning: The separation causes pain, even the beloved falls due to longing. If you see from behind, does the sight serve any purpose?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिव्य दर्शन की इच्छा और separation की पीड़ा की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि पीछे से दर्शन देखकर कोई उद्देश्य पूरा नहीं होता।
मूंवा पीछैं जिनि मिलै, कहै कबीरा राम।
पाथर घाटा लोह सब, पारस कौंणे काम।।१७४३।।
अर्थ: जिन्हें अंत में मिलना है, कबीर कहते हैं, पत्थर, लोहा और सब कुछ मूल्यवान हो जाता है। पारस का क्या उपयोग है?
Meaning: For those who meet at the end, says Kabir, even stone, iron, and all else become valuable. What use is the philosopher's stone?
व्याख्या: कबीर इस दोहे में सच्चे मिलन की महत्वता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चा मिलन सभी भौतिक वस्तुओं को मूल्यवान बना देता है, लेकिन पारस पत्थर का कोई उपयोग नहीं होता।
अंदेसड़ा न भाजिसी, संदेसो कहियां।
कै हरि आयां भाजिसी, कै हरि ही पासि गयां।।१७४४।।
अर्थ: संदेश तुम्हारे पास नहीं आता, संदेश कहाँ है? कुछ कहते हैं हरि चला गया है, जबकि अन्य कहते हैं हरि यहाँ पहले से ही है।
Meaning: The message does not come to you, where is the message? Some say Hari has gone away, while others say Hari is already here.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिव्य उपस्थिति और अनुपस्थिति की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि संदेश की वास्तविकता में भिन्नता हो सकती है, लेकिन हरि की उपस्थिति निश्चित है।
आइ न सकौं तुझ पैं, सकूं न तूझ बुलाइ।
जियरा यौही लेहुगे, बिरह तपाइ तपाइ।।१७४५।।
अर्थ: मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकता, न तुम मुझे बुला सकते हो। दिल बिछड़न से जल रहा है, लगातार जल रहा है।
Meaning: I cannot come to you, nor can you call me. The heart is burning with separation, continuously burning.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में separation और longing की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि separation के कारण दिल लगातार जल रहा है और दोनों ही मिल नहीं सकते।
यहु तन जालौं मसि करूं, ज्यूं धूवां जाइ सरग्गि।
मति वै राम दया करै, बरसि बुझावै अग्गि।।१७४६।।
अर्थ: यह शरीर को स्याही की तरह जलाऊं, जैसे धुआं स्वर्ग की ओर जाता है। लेकिन मन को राम की कृपा चाहिए, ताकि आंतरिक अग्नि बुझ सके।
Meaning: Let this body be burnt like ink, as smoke rises to heaven. The mind, however, needs Ram's grace to extinguish the fire within.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में शरीर की आहुति और मानसिक शांति की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि सच्ची शांति केवल राम की कृपा से ही मिल सकती है।
यह तन जालौं मसि करौं, लिखौं राम का नाउं।
लेखणि करूं करंक की, लिखि राम पठाउं।।१७४७।।
अर्थ: इस शरीर को स्याही की तरह जलाऊं, और राम का नाम लिखूं। इस कलम से, राम का नाम लिखकर भेज दूं।
Meaning: Let this body be burnt like ink, and let me write the name of Ram. Using this pen, I inscribe Ram’s name and send it.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में शरीर को समर्पण और राम के नाम को लिखने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि शरीर को जलाकर राम का नाम लिखना चाहिए।
कबीर पीर पिरावनी, पंजर पीड़ न जाइ।
एक जू पीड़ पिरीति की, रही कलेजा छाइ।।१७४८।।
अर्थ: कबीर कहते हैं, प्रेम की पीड़ा हृदय में रहती है, भले ही बाहरी पीड़ा चली जाती हो। हृदय हमेशा बिछड़ने के दर्द से अभिभूत रहता है।
Meaning: Kabir says, the agony of love remains in the heart, even though the external pain may go away. The heart is constantly overwhelmed by the pain of separation.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में प्रेम की पीड़ा और दिल के भीतर के दर्द की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेम का दर्द बाहरी पीड़ा की तुलना में ज्यादा गहरा होता है।
चोट सतांणी बिरह की, सब तन जरजर होइ।
मारणहारा जांणिहै, कै जिहिं लागी सोइ।।१७४९।।
अर्थ: बिछड़न के घाव स्थायी पीड़ा देते हैं, जिससे पूरा शरीर कमजोर हो जाता है। केवल वही व्यक्ति जो इस पीड़ा को भोगता है, उसकी वास्तविकता को समझता है।
Meaning: The wounds of separation cause enduring pain, making the whole body frail. Only the one who inflicts this pain understands its true nature.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में separation की पीड़ा और इसके असर को बताते हैं। उन्होंने कहा कि केवल वही व्यक्ति जो इस दर्द को अनुभव करता है, उसकी सच्चाई को जान सकता है।
कर कमाण सर सांधि करि, खैचि जु मारया मांहि।
भीतरि भिद्या सुमार ह्व, जीवै कि जीवै नांहि।।१७५०।।
अर्थ: जब मन दिव्य की ओर आकर्षित होता है, तो यह सांसारिक बंधनों से दूर हो जाता है। आंतरिक ज्ञान उजागर होता है, और आत्मा की वास्तविकता पर सवाल उठता है।
Meaning: When the mind is drawn to the divine, it pulls away from worldly attachments. The inner wisdom illuminates, questioning whether the self truly exists.
व्याख्या: कबीर इस दोहे में दिव्य ज्ञान और सांसारिक बंधनों की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि जब मन दिव्य की ओर खिंचता है, तो आंतरिक ज्ञान से आत्मा की सच्चाई सामने आती है।